जनजाति गौरव दिवस पर एक दिवसीय संगोष्ठी कार्यक्रम हुआ आयोजन, जनजाति नायकों के चित्र पर माल्यार्पण के बाद राज्यगीत से कार्यक्रम का हुआ शुभारंभ 

(हेमंत बघेल)

कसडोल। शहीद वीर नारायण सिंह औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था असनिंद कसडोल में तकनीकी शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ शासन के दिशानिर्देश पर जनजाति गौरव दिवस के परिपेक्ष्य में आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी कार्यक्रम किया गया जिसमें मुख्य अतिथि राम मरकाम जिलाध्यक्ष शासकीय अनुसूचित जनजाति सेवा विभाग, विशिष्ठ अतिथि रामचंद्र ध्रुव सरपंच ग्राम असनिन्द, सुरेश पैकरा SDO जल संसाधन विभाग कसडोल तथा मुख्य वक्ता पुनेश्वर नाथ मिश्रा अधिवक्ता एवं जिला संयोजक जनजाति गौरव कार्यक्रम बलौदाबाजार, अध्यक्षता प्राचार्य प्रशांत शुक्ल ने किया। सर्वप्रथम जनजाति नायकों के चित्र पर माल्यार्पण के बाद राज्यगीत से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।

कार्यक्रम की प्रस्तावना संस्था प्रमुख ने दी पश्चात मुख्य अतिथि राम मरकाम ने जनजाति समाज के बारे में बताते हुए कहा कि जनजाति समाज के गौरव अतीत को याद कर आज हम समाज को सही आयना दिखा रहे है कि जो समाज हम सबके मूल में है आखिर अंग्रेजो की बनाई बातों से हम उन्हें आज अलग मानने लग गये जबकि वास्तविकता उलट है जो बातें इतिहास में जनजाति समाज को लेकर बताई जाती वह नही बताई गई। जनजाति समाज का अपना गौरवशाली इतिहास है जिसे आज सरकार आगे ला रही या जनजाति समाज सहित सभी समाजो के लिए मिथक दूर करने का महत्वपूर्ण कार्य है। सरपंच रामचन्द्र ध्रुव ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जनजाति समाज को लेकर आयोजित कार्यक्रम को लेकर चिंता और संचालन के लिए सरकार का धन्यवाद देते हुए जनजाति समाज के रीति नीति और दृष्टि से लोगो का वरीय कराया। मुख्य वक्ता पुनेश्वर नाथ मिश्रा ने बताया कि सभ्यता और संस्कृति देने वाला समाज जनजाति समाज है इनके गौरवशाली इतिहास है जिन्हें दुर्भाग्य से कही पढ़ाया नही जाता स्वत्रंत्रता आन्दोलन हो या फिर भारत मे बाहरी आक्रमणकारी के आने पर यदि किसी समाज ने प्रतिरोध सर्वप्रथम किया वो जनजाति समाज है इनकी अपनी एक आध्यत्मिक ऊँचाई है जिसकी कल्पना हम माता सबरी के संवाद से कर सकते है। अंग्रेजो ने इस समाज को हमेशा निचले स्तर का माना और इसका प्रचार किया यही कारण है कि लोगो मे अंग्रेजो की बताई बाते असभ्यता वाली का प्रचार हुआ।

आज जनजाति नायकों की स्वतंत्रता में भूमिका पर चर्चा नही होती जबकि स्वतंत्रता के असल जड़ में जनजाति समाज के नायक है। चाहे वह बिरसा मुंडा ही रानी दुर्गावती हो कोमराम भील हो या रानी गाइदिन्ल्यू हो वीरनारायण सिह हो तिलका माझी हो बुद्धु भगत ऐसे हजारों जनजाति वीरो ने देश की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति दी। हमें इतिहास 1857 से 1947 तक बताया जाता हूं जबकी इसके पहले इतिहास हमसे छुपाए गए। आज जनजाति नायकों को फिल्मों मे ऐसा दिखाया जाता है जैसे वे है नही और यही हम सबके मानसिकता में बैठ चुकी है, जनजाति समाज के कई राज्य हुआ करते थे उनके अपने अलग स्थापत्य कला हुए लेकिन अंग्रेजो ने जनमानस में यह बात छेड़ी की ये असभ्य है, जो कि पूर्णतः मिथक रहे। आज जंगल बचे है उनमें जनजाति समाज का अमूल्य योगदान है वे प्रकृति पूजक है। आज समय है इन जनजाति समाज से विश्व को दिशा देने की क्योंकि उनका पूरा जीवन समाज मे एक गौरवपूर्ण जीवन है। समय है जनजातियों के बारे में जानने समझने की और इनके इतिहास समाजिक आर्थिक और आध्यत्मिकता को समझने की जो समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, अंग्रेजो ने ऐसी पद्धति से जनजाति समाज का अध्ययन करने हेतुक विभाग खोला जिसे हम जंतु विज्ञान (anthropology) रखा गया जो उनका जनजाति समाज के प्रति सोच को दर्शाता है जिस समाज की सारी रीति नीति और प्रथा वैज्ञानिक है उंसे जानवर जैसे ही लोग समझे ऐसा एक विभाग बनाया। लोगो की दृष्टि जनजातियों के प्रति तभी बदल सकती है जब हम उन्हें दुसरो के चश्मे से न देख अपने चश्मे से देखे और समझे। अंग्रेजो के बताये इतिहास से हमे जनजाति समाज समझ नही आएगा आज छत्तीसगढ़ जैसे प्रान्त में हर तीसरा व्यक्ति जनजाति है इसलिए इस विषय को जानना समझना और अनुभव मे लाना महत्वपूर्ण है।

आज जनजातियों के विषय मे अध्ययन कर लिखने और जानने का समय है जिसे आज बौद्धिक जगत करने की कोशिश कर रहा हैं। कार्यक्रम के दौरान जनजाति नायकों की फ़ोटो प्रदर्शनी रंगोली निबंध प्रतियोगिता आदि का भी आयोजन किया गया जिसमें की विद्यार्थियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।जिन्हें कार्यक्रम के दौरान सम्मानित भी किया गया। आज के कार्यक्रम में आईटीआई परिवार के सभी प्राध्यापक सहित सैकड़ों की संख्या में छात्र छात्राएं उपस्तिथ रहे।

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