कछार में आदिवासी जमीन की सामान्य वर्गों के नाम फर्जी रजिस्ट्री का मामला, पटवारी समेत सरपंच-सचिव पर गंभीर आरोप

(बबलू तिवारी)
जशपुर। पत्थलगांव में गैर आदिवासियों की जमीन छल पूर्वक सामान्य वर्ग के नाम करने का खेल बदस्तूर जारी है। सूत्रों की मानें तो आदिवासी समाज से जुड़े एक गंभीर भूमि विवाद का मामला सामने आया है। कछार गांव में एक आदिवासी किसान की जमीन को कथित रूप से चोरी-छिपे गैर-आदिवासियों के नाम रजिस्ट्री कर दिया गया है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस जमीन को मूल भू-स्वामी आदिवासी ने कभी बेचा ही नहीं, फिर भी शासकीय रिकॉर्ड में उसका नाम हटा कर अन्य लोगों के नाम दर्ज कर दिए गए हैं।
जबकि असली मालिक आदिवासी किसान अब अपने जमीन के कागजात—पर्चा, पट्टा लेकर न्याय के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रहा है। हालांकि उसने आज भी अपनी जमीन पर कब्जा बनाए रखा है, लेकिन धोखाधड़ी की यह रजिस्ट्री दूसरे सामान्य वर्ग के व्यक्तियों को कर दी गई है।जानकारी के अनुसार, जिस खसरा नंबर की भूमि पर यह फर्जीवाड़ा हुआ है, उसमें दो प्लॉट गैर-आदिवासियों के नाम रजिस्ट्री हो चुके हैं। पत्थलगांव के ग्राम कछार में आदिवासी किसान बुधु उरांव की जमीन खाता नंबर 299 के टुकड़े क्रमांक 03 और 04 की रजिस्ट्री फर्जी तरीके से 22 जून 2023 को गैर आदिवासी अंकित अग्रवाल एवं 3 जून 2025 को मोहनलाल अग्रवाल के नाम कर दी गई। दोनों ही रजिस्ट्री में विक्रेता भू स्वामी अंतराम कमला बाई वगैरह एवं हेमो बाई बारीक को भू स्वामी दर्शाया गया है जिनका उक्त खसरे की जमीन से दूर दूर तक वास्ता नहीं है। आदिवासी भूमि स्वामी बंधु की पैट्रिक जमीन को सामान्य वर्गों द्वारा दूसरे सामान्य वर्गों के नाम रजिस्ट्री किए जाने के इस मामले में न तो धारा 170 ख के तहत प्रक्रिया अपनाकर की गई और न ही किसी सक्षम अधिकारी के आदेश से। वहीं पटवारी पर आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर जमीन की चौहद्दी दी और मोटी रकम लेकर गैर-आदिवासियों के नाम रजिस्ट्री कराई।
संदेह के घेरे में पंचायत प्रतिनिधि
मामले में सरपंच और ग्राम पंचायत सचिव की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। आरोप है कि दोनों ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदिवासी जमीन के नाम में संशोधन हेतु पंचायत प्रस्ताव पारित किया, जिससे फर्जीवाड़ा संभव हो सका।
आदिवासी किसान ने इस संबंध में प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस गंभीर मामले में किस तरह की कार्रवाई करता है। यह मामला न सिर्फ जमीन कब्जे का है बल्कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का भी गंभीर उदाहरण है।
सवाल यह है कि जब रजिस्ट्री प्रक्रिया सामान्यतः पत्थलगांव तहसील कार्यालय में ही पूरी होती है, तो फिर खाता नंबर 299 के टुकड़े 03 और 04 की रजिस्ट्री जिला मुख्यालय जशपुर में जाकर वहां के रजिस्ट्रार के माध्यम से क्यों कराई गई?