संत का कोई शत्रु नहीं होता: पंडित सागर मिश्रा

(भानु प्रताप साहू)

कसडोल। संत का कोई शत्रु नहीं होता जिस प्रकार कोई भी मनुष्य अपने सभी अंगों से प्यार करता है किसी से शत्रुता या बैर नहीं करते कभी कभी जीभ को दांत भी काट लेता है लेकिन दांत से जीभ कभी बैर नहीं करते। उक्त बातें समीपस्थ ग्राम पंचायत कोट में मिश्रा परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन कपिल गीता के अवसर पर पांडातराई कवर्धा से पधारे सागर मिश्रा जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि संत का स्वभाव सरल होता है वह सभी से सम भाव रखता है और पूरे जगत को एक समान समझता है।

उन्होंने दक्ष की कथा बताते हुए कहा कि राजा दक्ष को जब प्रजापतियो का नायक बनाया तो राजा दक्ष को अहंकार हो गया और भगवान शंकर से बैर करने लगा उन्होंने कहा कि प्रभुता अर्थात पद पाने के बाद लोगों को मद अर्थात अहंकार आता ही है। राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपमानित करने के लिए हरिद्वार के कनखल में यज्ञ की रचना की जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन भगवान शंकर को निमंत्रण नही दिया इसकी जानकारी जब माता सती को हुआ तो माता सती पिता के घर गई पर जब वहां यज्ञ में भगवान शंकर के लिए कोई स्थान नहीं देखा । आचार्य सागर महाराज ने कहा कि माता सती ने वहा उपस्थित ऋषि मुनियों को यह कहते हुए अपना शरीर त्याग दिया कि जिस किसी ने मेरे पति की निंदा सुनी या कही उसका कल्याण नहीं होगा। आचार्य श्री महराज जी ने कहा कि जिस किसी भी स्थान में भगवान की, गुरु की और अपने इष्ट की निंदा हो रही हो वहा यदि सामर्थ्य है तो निंदा करने वाले की जिव्हा खींच लेना चाहिए अन्यथा वहा से अन्यत्र चले जाना चाहिए। इस अवसर पर ग्राम पंचायत कोट के अलावा कसडोल सहित आस पास गांव के ग्रामीण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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