आखिरकार कौन डकार रहा है पशुओं का आहार, शासन, प्रशासन या फिर स्व-सहायता समूह

राकेश चंद्रा / बिजुरी। प्रदेश कि सत्ता में अल्पकाल के लिए जब कांग्रेस कि सरकार आयी थी, तब सूबे के मुखिया बने कमलनाथ ने निराश्रित पशुओं के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए, समूचे प्रदेशभर में गौशाला के निर्माण कराने का निर्णय लिया गया था। ताकि इधर-उधर भटकने वाले निराश्रित मवेशियों को आसरा मिल सके। लिहाजा कमलनाथ ने प्रदेशभर में गौशालों के निर्माण का आदेश भी जारी किया और उन आदेशों पर अमल भी हुआ। किन्तु प्रदेशभर में गौशाला निर्माण कार्य के दौरान ही राजनीतिक उठापटक में कमलनाथ कि सरकार गिर गयी। और कमलनाथ सत्ता के सिंहासन से विहीन हो गए।
शिवराज सिंह चौहान ने बिना भेदभाव के अधूरे कार्य को किया पूरा-
कमलनाथ सरकार गिरने के बाद सत्ता कि सिंहासन में वापसी करने वाले भाजपा के शिवराज सिंह चौहान ने दुर्भाव एवं दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, कमलनाथ सरकार के गौशाला निर्माण कार्य को ना केवल जारी रखा। अपितु उक्त कार्य को पूरा भी कराया। साथ ही उन गौशालों में निराश्रित पशुओं को आसरा देकर समय-समय पर उनके चारा-पानी का भी पूरा इंतजाम कराया। किन्तु मध्यप्रदेश कि 16 वीं विधानसभा में प्रचण्ड बहुमत से जीत हासिल करने वाली भाजपा संगठन के शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं द्वारा शासन सत्ता का बागडोर डाॅ. मोहन यादव के हाथों सौंपा गया। जिनका कार्यकाल भी शुसाशन नीति, अन्त्योदय, एवं विकाशवादी परम्पराओं का निर्वाहन करती है। बावजूद इसके एक अपवाद यह भी है कि इनके कार्यकाल में बीते कुछ माहों से गौशाला में आश्रित पशुओं कि देख-रेख एवं उनके आहार कि समुचित व्यवस्था नही हो रहा है। जिसके अभाव में गौशाला के आश्रित मवेशी विवशता पूर्ण स्थिती में पल रही हैं।
02 माह से नही मिला मवेशियों को आहार, आखिरकार इन्हे कौन रहा है डकार-
प्रदेश के अंतिम छोर पर स्थित आदिवासी बाहुल्य अनूपपुर जिले के कोतमा तहसील अन्तर्गत साजाटोला पंचायत में संचालित गौशाला में गाय, बैल, बछडो़ं सहित लगभग 100 मवेशी आश्रित हैं। जिनके चारा-भूषा इत्यादि अहार कि जिम्मेदारी ग्राम पंचायत में संचालित स्व-सहायता समूह को शासन द्वारा प्रदान की गयी है। किन्तु आश्रित पशुओं के अहार कि जिम्मेदारी उठाने वाले स्व-सहायता समूह द्वारा बीते 02 माह से गौशाला में चारा-भूषा सहित किसी भी प्रकार का आहार उपलब्ध नही कराया गया है।जिससे गौशाला में कार्यरत कर्मचारी गौशाला के सभी मवेशियों को चरने के लिए खुला छोंड़ने को विवश है। उक्त कर्मचारी कि मानें तो कुछ दिन पूर्व भीषण गर्मी में स्थिती इस कदर भयावह रही है कि गौशाला का गोबर बेंचकर, बदले में पराली खरीदकर, इन मवेशियों का पेट भरना पड़ता था। तब पर भी ना तो स्व-सहायता समूह द्वारा और ना ही पंचायत के किसी भी जिम्मेदार द्वारा इन पशुओं कि स्थिती पर उदारता दिखायी गयी।
पंचायत के सरपंच को गौशाला से नही कोई मतलब-
ग्राम पंचायत साजाटोला अन्तर्गत गौशाला में आश्रित पशुओं को समय-समय पर चारा-भूषा, पानी आदी मिल रहा है या नही इस बात से पंचायत के सरपंच को बिल्कुल भी मतलब नही है। जिसकी पुष्टी करने के लिए पंचायत के सरपंच सीमा पाव से सम्पर्क किया गया तो वह खेत में होने का बहाना बताकर मामले से पल्ला झाड़ ली। सवाल उठता है कि 02 माह से गौशाला के पशुओं को किसी भी तरह से आहार नही मिल रहा है। तदपर भी शासन के नुमाइंदे आखिरकार क्यों मौन साधे बैठे हैं। क्या आहार कि उपलब्धता में सचमुच प्रदेश सरकार अपनी असमर्थता जाहिर करने लगा है, या फिर चंद स्वार्थ लोगों ने जिम्मेदारों से सांठ-गांठ कर, पशुओं के निवाला को स्वलाभ का जरिया बना लिया हैं। मसला जो भी है परन्तु शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों को मामले पर गम्भीरता दिखाने कि आवश्यक्ता है। ताकि बेजुबानों का हक ना मारा जा जाए।