शिवरीनारायण में माघ पूर्णिमा पर कुंभ स्नान करने उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, दीपदान कर भगवान जगन्नाथ और माता शबरी का किया दर्शन

(हेमंत बघेल)
कसडोल। छत्तीसगढ़ के प्रयाग शिवरीनारायण में बुधवार को माघ पूर्णिमा के अवसर पर कुंभ स्नान करने और भगवान जगन्नाथ तथा माता शबरी के दर्शन के लिए श्रद्धालु जन उमड़ी लाखों की संख्या में पहुंचे जहां स्नान पश्चात दीपदान कर भगवान जगन्नाथ का दर्शन किए ।
कसडोल से करीब 25 किमी दूर चित्रोतपाला महानदी के तट पर धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल शिवरीनारायण है जहां प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक लगभग 15 दिनों का मेला लगता है । यह प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण नगर है जो “छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी” के नाम से विख्यात है। यह बिलासपुर से ६४ किमी, राजधानी रायपुर से बलौदाबाजार से होकर १२० किमी जांजगीर जिला मुख्यालय से 45 कि. मी., कोरबा जिला मुख्यालय से ११० कि. मी. और रायगढ़ जिला मुख्यालय से सारंगढ़ होकर ११० कि. मी. की दूरी पर अवस्थित है।
सौंदर्य और चतुर्भुजी विष्णु की मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। हर युग में इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णु पुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है। भगवान श्रीराम और लक्ष्मण शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान करके इस घनघोर दंडकारण्य वन में आर्य संस्कृति के बीज प्रस्फुटित किये थे। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए “शबरी-नारायण” नगर बसा है। भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। कदाचित् इसी कारण इसे “गुप्त तीर्थधाम” कहा गया है। याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र में इसका उल्लेख है। भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था।
प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं। प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से जाने वाला यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द रहा है। यहां शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति रही है। छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है। इसे नारायण क्षेत्र या पुरूषोत्तम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र शिवरी नारायण के नाम से जाना जाता है।छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिला मुख्यालय से 45 किमी की दूरी पर मैकल पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य शिवनाथ, जोंक और महानदी के संगम पर स्थित शिवरी नारायण को तीर्थ नगरी प्रयाग जैसी मान्यता मिली है। यहाँ पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध शिवरी नारायण मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम को यहीं पर शबरी ने बेर खिलाये थे अत: शबरी के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर मे इसका नाम बिगडकर शिवरी नारायण पड गया। यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना प्राचिन मंदिर भी है। पर्यटन की दृष्टी से यह स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिवरीनारायण के इस मंदिर को बडा मंदिर एवं नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। उक्त मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला एवं मुर्तिकला का बेजोड नमूना है। ऎसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा शबर ने करवाया था। ९वीं शताब्दी से लेकर १२वीं शताब्दी तक की प्राचीन मुर्तियो की स्थापना है। मंदिर की परिधि १३६ फीट तथा ऊंचाई ७२ फीट है जिसके ऊपर १० फीट के स्वर्णिम कलश की स्थापना है शायद इसीलिए इस मंदिर का नाम बडा मंदिर भी पडा। सम्पूर्ण मंदिर अत्यन्त सुंदर तथा अलंकृत है जिसमे चारो ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। मंदिर अत्यंत भव्य दिखाई देता है।