संतान की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा हलषष्ठी व्रत, पूजा-अर्चना कर मांगा आशीर्वाद
(पंकज कुर्रे)
पामगढ़। भादों माह के कृष्ण पक्ष षष्ठी को मनाए जाने वाले हलषष्ठी पर्व के लिए महिलाओं में विशेष उत्साह देखा गया। सिंचाई कालोनी पामगढ़ की महिलाएं इस व्रत पूजा को परंपरागत विधान से संपन्न करने के लिए सुबह से ही निर्जला उपवास रखी थी। पूजा के लिए जगह का चयन कर व्रत कथा का आयोजन किया गया। इस आयोजन में महिलाओं ने पसहर चावल, सुहाग सामाग्री व अन्य पूजन सामाग्रियों विधान के अनुसार एकत्रित किया , व्रत के लिए आंगन में छोटा गड्ढा खोदकर तालाब का निर्माण किया गया। तालाब के किनारे कांशी, बेर व परसा के डाल को आच्छादित किया गया। छठ माता पूजा के दौरान पलास के पत्ते में षष्ठ महादेवियों की प्रतिमा स्थापित की गई।
इस व्रत की विशेषता के बारे मे पंडित चंद्रमोहन तिवारी ने बताया कि यह एक ऐसा व्रत है, जिसे नवविवाहिता महिलाएं संतान कामना के लिए करती हैं तथा माताएं संतान के सुख समृद्धि व सुहाग के दीर्घायु के लिए करती हैं। महिलाओं द्वारा हलषष्ठी मैय्या को प्रसन्न् करने के लिए भैंस के दूध से बने पसहर चावल मुनगा पत्तियों से बनी सब्जियों को भोग के रूप में चढ़ाया गया। संतान सुख के लिए माता को प्रसन्न् करने हेतु मिट्टी के खिलौने भी पूजन सामाग्रियों के साथ व्रत के दौरान चढ़ावा किया गया। इस पर्व में पोतनी का विशेष महत्व होता है। पूजा के अंत में बच्चो की पीठ को पोतनी से मारा जाया है ऐसा किए जाने के पीछे महिलाओं की यह मान्यता है कि हलषष्ठी माता का आशीर्वाद सदैव उनके साथ रहता है। इस व्रत में यह भी विधान है कि उपवास के दौरान हल चले स्थानों पर व्रती महिलाएं पांव नहीं रखती।
व्रत किए जाने के बाद महिलाओं ने लाई, महुवा, मुनगा भाजी व पसहर चावल के भात प्रसाद का भोग प्रसाद के रूप में वितरण किया। गांव के अलग अलग क्षेत्रों में महिलाओं ने सामुहिक रूप से छठमाता की पूजा की। पूरे दिन पूजा अर्चना का दौर मंदिरों के अलावा विभिन्न घरों में होती रही। शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में हलषष्ठी की पूजा पारंपरिक रीति से कर महिलाओं ने परिवार के सुख समृद्धि सहित पति व संतान के दीर्घायु की कामना की।