तापस वेष विसेषि उदासी,चौदह बरिस रामु बनवासी- राजेश्री महन्त जी

 दूसरे रविवार को शिवरीनारायण मठ में रविवारीय राम कथा आयोजित

(मदन खाण्डेकर)

 शिवरीनारायण। प्रत्येक माह के द्वितीय रविवार को रविवारीय राम कथा का (Event Shivrinarayan) आयोजन शिवरीनारायण मठ में किया जाता है ।इसी सिलसिले में 13 अक्टूबर 2024 को इस माह का आयोजन संपन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ महामंडलेश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज ने रामचरितमानस एवं भगवान  रामचंद्र जी के तैल चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया। इस अवसर पर लोगों को अपना आशीर्वचन प्रदान करते हुए राजेश्री महन्त जी महाराज ने कहा कि-  रामचरितमानस में मानव जीवन के सभी समस्याओं का समाधान किसी न किसी रूप में विद्यमान है। जिस तरह से हम किसी गणित को हल करने के लिए सूत्र का उपयोग करते हैं वैसे ही श्री रामचरितमानस के प्रत्येक दोहा और चौपाई हमारे जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए सूत्र के समान कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक किसी व्यक्ति के बारे में कोई मांग नहीं किया जाता तब तक उसकी विशेषता का पता नहीं चल पाता है।श्री भरत जी महाराज के लिए जब कैकई माता ने राज्य की मांग की तभी से भारत जी के चरित्र के विषय में लोगों को अधिक ज्ञान हुआ। माता कैकई ने अपने वरदान में महाराज दशरथ जी से यह मांगा कि- तापस वेष विषेसि उदासी, चौदह बरिस रामु बनबाषि।। अर्थात तपस्वि का वेश धारण करके राम जी चौदह वर्षों तक वनवास में रहेंगे। यहीं से भारत जी के उज्ज्वल चरित्र का प्रादुर्भाव मानस में होता है। माता ने भारत जी के लिए राज्य मांगा लेकिन भारत जी ने अपने आप को सेवक मान लिया। उन्होंने कहा कि- सिर भर जाऊं उचित अस मोरा। सबते सेवक धरमु कठोरा।। लोगों को मानस मर्मज्ञ दिनेश गोस्वामी, भगत राम साहू, गंगाराम केवट सहित अनेक मानस वक्ताओं ने संबोधित किया। इस अवसर पर विशेष रूप से मानस प्रवक्ता के पी साव, सीताराम डनसेना, कुंज राम कश्यप, पुनीराम साहू, कृष्ण कुमार कश्यप, शिवकुमार द्विवेदी, बिहारी लाल भारद्वाज तथा कार्यक्रम के आयोजक निरंजन लाल अग्रवाल त्यागी जी महाराज, सुखराम दास जी, मीडिया प्रभारी निर्मल दास वैष्णव सहित अनेक गणमान्य नागरिक गण उपस्थित थे। कार्यक्रम का विधिवत संचालन रंगनाथ यादव ने किया। उल्लेखनीय है कि इस आध्यात्मिक कार्यक्रम में संयोग से दीवान परिवार भटगांव के सदस्य भी सम्मिलित हुए उन्हें सम्मानित किया गया।



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