संतान सप्तमी का व्रत रखकर महिलाओं ने की सामूहिक पूजा

(संजीत सोनवानी)

बिजुरी। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष कि सप्तमी तिथी को संतान के लिऐ रखा जाने वाला संतान सप्तमी व्रत कि महत्वता सनातनी धर्माविशेष में लोगों के बीच खास महत्व रखता है। भगवान शिव एवं माता पार्वती को समर्पित इस व्रत को भारत के अधिकांश राज्य एवं क्षेत्र में हिन्दू धर्म कि महिलाएं पूरे विधी-विधान के साथ रखती हैं और अपनी-अपनी संतानों कि दीर्धायु, उन्नति एवं रक्षा कि कामना करती हैं। मंगलवार 10 सितम्बर के दिन आदिवासी बाहुल्य अनूपपुर जिलाक्षेत्र स्थित कोयलांचल नगरी बिजुरी एवं समीपवर्ती अंचलों में भी अधिकांशतः महिलाओं ने पूरी श्रध्दा के साथ इस व्रत को कर, भगवान से अपनी-अपनी संतानों के दीर्घायु, उन्नति एवं रक्षा कि कामना किए।

संतान सुख कि चाहत रखने वाली महिलाएं भी करती हैं यह व्रत…

मान्यता है कि जो स्त्रियां संतान सुख से वंचित है उन्हें भी यह व्रत आवश्यक रूप से करना चाहिए, कारण इसके प्रभाव से सूनी गोद शीघ्र भर जाता है, यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिए किया जाता है।

बच्चों कि सुख -समृध्दी के लिऐ भी उत्तम है यह व्रत…

संतान की सुख-समृद्धि के लिहाज से भी इस व्रत को सबसे उत्तम माना जाता है। यही वजह है कि इस दिन स्त्रियां व्रत रखकर शाम के समय शिव पार्वती को गुड़ से बने 7 पुए का भोग लगाती हैं। जिससे संतान की तरक्की में आ रही बाधाएं खत्म होती है एवं उसे अच्छी शिक्षा, बेहतर भविष्य प्राप्त होता है।

संतान को मिलता है दीर्धायु…

एक मान्यता यह भी है कि संतान सप्तमी पर व्रती महिलाएं अगर सूर्य को अर्घ्य देकर, शिवजी को 21 बेलपत्र और माता पार्वती को नारियल चढा़ती हैं तो उनका संतान दीर्धायु होता हैं और उनके सभी दुखों का नाश भी होता है।