जब जंगल ही नहीं रहेंगे तो लोग अमरकंटक क्यों आएगें
जबलपुर- अमरकंटक मार्ग चौड़ीकरण की भेंट चढ रहे सदियों पुराने जंगल
( मनोज कुमार द्विवेदी)
अमरकंटक/ अनूपपुर। नर्मदा की उद्गम नगरी (Amarkantak) अमरकंटक का धार्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय और पर्यटन की दृष्टि से बड़ा महत्व है। प्रतिवर्ष यहाँ महाराष्ट्र, छग, प बंगाल ,मप्र , उप्र,राजस्थान सहित दक्षिण भारत के अन्य राज्यों से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। प्राकृतिक रुप से यह पर्वतमालाओं से घिरी हरी – भरी वादियों के कारण लोगों को आकर्षित करता है। नर्मदा ,सोन, जोहिला के साथ बहुत सी अन्य नदियों का उद्गम होने से यह ऋषि – मुनियों , नर्मदा परिक्रमा वासियों , नर्मदा भक्तों की आस्था का मुख्य केन्द्र है। वर्तमान में यहाँ के लोग विकास के नाम पर तेजी से कटते जंगलों और पक्के निर्माणों से डरे हुए हैं। यहाँ से साधू ,संतों और ग्रामीणों ने समय – समय पर चिंता जाहिर करते हुए प्रशासन को आगाह किया है।
“जबलपुर – अमरकंटक मार्ग निर्माण”
इन दिनों जबलपुर – अमरकंटक मार्ग का निर्माण बहुत तेजी से चल रहा है। फोर लेन सड़क के लिये सड़क के दोनों ओर हजारों की संख्या में छोटे – बड़े पेड़ काटे जा रहे हैं। मिट्टी और मुरुम के लिये टीले, छोटी पहाडियों, सरकारी भूमि को खोदा जा रहा है। यह बहुत चिंता जनक है । लोग यह समझते हैं कि बढते ट्रैफिक के हिसाब से सड़कों की चौड़ाई बढना चाहिये । सुगम , सुरक्षित यात्रा के लिये यह सभी की आवश्यकता है। सड़कें चौड़ी होंगी तो यात्रा में लगने वाले समय , धन, शक्ति की भी बचत होगी।
“करंजिया से कबीर तक कटेंगे हजारों वृक्ष”
पर्यावरणीय दृष्टि से इसका दूसरा पक्ष अधिक डरावना और ज्यादा चिंताजनक है।
डिण्डोरी जिले के करंजिया से कबीर तक लगभग 22 किमी सड़क के दोनों ओर फोर लेन के लिये जंगल के अंदर 300 फिट तक हजारों वृक्षों को काटने के लिये चिंन्हांकन किये जाने की पुष्ट सूचना है। अब कबीर से करंजिया के बीच 22 किमी सड़क को चौड़ा करने के लिये उन हजारों वन वृक्षों को काटा जाएगा जो सैकड़ों वर्ष पुराने हैं।
इससे यहाँ का वन रकबा सिकुडेगा। जिसके कारण यहाँ के जीव जन्तुओं , वानस्पतिक प्रजातियों के नष्ट होने की प्रबल आशंका है।
“साल बोरर के कारण कटे वृक्षों की भरपाई नहीं”
इस क्षेत्र में दो दशक पहले साल बोरर के प्रकोप के वक्त लाखों साल / सरई ( शोरिया रोबुस्टा ) वृक्षों का कत्लेआम दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में किया गया था। उसकी भरपाई आज तीन दशक बाद भी नहीं हो पाई है।
अब एक बार फिर फोर लेन सड़क निर्माण के लिये इस सघन वन क्षेत्र के हजारों वृक्षों के कटने से यहाँ के इकोसिस्टम पर , वनस्पतियों , जीव जन्तुओं के अस्तित्व पर खतरा है। ऐसा कहें कि मैकल की इन तराईयों की जिस पर्यावरणीय सुन्दरता को देखने लोग यहाँ आते हैं, उसका नष्टीकरण सुनिश्चित किया जा चुका है। इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि बिना वृक्षों को काटे हुए, आसानी से सुलभ जमीनों पर ही मार्ग चौड़ीकरण करके काम को आगे बढाया जा सकता है। इसके लिये सडक के दोनों ओर लगभग 300 फीट तक सदियों पुराने वृक्षों को काटना बिल्कुल जरुरी नहीं है। जब यहाँ जंगल और उसकी प्राकृतिक सुन्दरता ही नहीं बचेगी तो यहाँ का मूल अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा। जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य और केन्द्र सरकार का ध्यानाकर्षण करने की कोशिश की जा रही है। क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों को भी इस हेतु आवश्यक पहल करने की जरूरत है।