पितृपक्ष में नवमी तिथि का है विशेष महत्व, श्राद्ध से मिलता है शांति
(मिथलेश वर्मा)
सुहेला। पितृपक्ष में नवमी तिथि के श्राद्ध को विशेष स्थान दिया गया है. इस दिन दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध करने का विधान है. इसलिए इसे मातृ नवमी के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है l ग्राम सुहेला के बड़े तालाब में ग्रामीण ने श्रद्धा से तरपन किया l जिसमें कुश से जो, काली तीली, चावल पानी के साथ तरपन किया गया l घर में गाय के गोबर के कंडे की आग में पकवान बड़ा, बोबरा तरोई की सब्जी, दाल, चावल का भोग लगाया गया l हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह वह समय होता है जब श्रद्धालु अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस अवधि के दौरान विशेष रूप से नवमी तिथि को मातृ नवमी के रूप में मनाया जाता है, जो दिवंगत महिलाओं के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन किए गए श्राद्ध को विशेष फलदायी माना जाता है और इसे संपूर्ण परिवार के लिए पुण्यदायक माना जाता है। मातृ नवमी का दिन हिंदू धर्म में माताओं की आत्मा की शांति के लिए समर्पित है। इस दिन सभी लोग अपने दिवंगत माताओं और अन्य महिलाओं का श्राद्ध करके उनकी आत्मा को शांति देने का प्रयास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध से उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है और परिवार को सुख-शांति मिलती है। इस दिन किए गए कर्मों का प्रभाव जीवनभर महसूस किया जाता है, जिससे संतान को पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
“बड़े तालाब में हुआ आयोजन”
ग्राम सुहेला में मातृ नवमी के अवसर पर श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों की याद में बड़े तालाब के किनारे विशेष आयोजन किया। यहाँ ग्रामीणों ने बड़े श्रद्धा भाव से तरपन किया। तरपन में कुश, काली तीली, चावल और पानी का उपयोग किया गया। कुश के माध्यम से तरपन करना एक विशेष विधि है, जो पितरों के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। तरपन करने के लिए सबसे पहले एक साफ स्थान का चयन किया गया। यहाँ पर कुश घास को समर्पित किया गया, जो पितरों की आत्मा के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बाद काली तीली, चावल और जल का उपयोग करते हुए श्रद्धा पूर्वक पितरों को अर्पित किया गया।इस दिन विशेष पकवानों का निर्माण किया गया, जिसमें बड़े, बोबरा और तरोई की सब्जी, दाल और चावल शामिल थे। ये सभी पकवान पितरों को समर्पित किए गए, ताकि उनकी आत्मा को संतोष और शांति मिले।इस दिन परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होते हैं और मिलकर इस पवित्र कर्म को अदा करते हैं। यह एकता और सामंजस्य का प्रतीक है, जिससे परिवार की सामाजिक और धार्मिक बुनियाद मजबूत होती है। मातृ नवमी पर श्राद्ध करना केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक बंधन को भी मजबूत करता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर अपने पितरों का स्मरण करते हैं और उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। इस प्रकार की परंपरा न केवल पितृ पूजा के महत्व को दर्शाती है, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे का संदेश भी देती है।
पूर्वजो के प्रति है सम्मान
मातृ नवमी का श्राद्ध न केवल धार्मिक मान्यता का पालन है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने परिवार की नींव को मजबूत रखने के लिए हमेशा एकजुट रहना चाहिए। इस दिन किए गए कर्मों का फल जीवनभर हमारे साथ रहता है, और यह हमें अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है। मातृ नवमी का आयोजन सुहेला गांव में इस परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जहाँ ग्रामीणों ने श्रद्धा और भक्ति के साथ अपने दिवंगत महिलाओं को याद किया।